माँ एक ऐसा शब्द है जिसको मैंने कभी हारते नहीं देखा है। कोई बुरा मान जाए तो उनका ख्याल रखा जाता मनाया जाता, पर माँ को बुरा मानने का सवाल ही नहीं पैदा होता। वो तो बिना पगार, बिना की स्वार्थ अपना काम करती। उसे ना तो बोनस की चिंता होती, ना ही एरिअर की।
ना इतवार को उनकी छुट्टी होती ना किसी त्योहार को उनका आराम, बल्कि इन दिनो तो उनसे लोग एक्स्ट्रा काम करवा लेते। पर माँ किस मिट्टी की बनी होती कभी बुरा ही नहीं मानती। परिस्थितियाँ कितनी भी विषम क्यूँ न हो पर माँ सुपरवुमेन बनकर उससे लड़ने चल देती है। फिर यह डिजिटल के तौर तरीके सीखना कौन सी बड़ी चीज है।