बिज़नस के लिए तो वरदान है डिजिटल ये सुनने में जरा अजीब सा लगेगा पूरा आर्टिक्ल पढ़िये। अभी हालही में मेरी निगाह किसी प्रिटिंग के विज्ञापन पर पड़ी जिसका शीर्षक था “5 मुख्य बातें क्यूँ बिज़नस को प्रिटिंग की है जरूरत”। 21वीं सदी के दौर में मुझे ये पढ़कर बड़ा अचंभा सा लगा। इतना सारा पैसा एक बिज़नस के पास शुरुआत में थोड़े होता की वो प्रिटिंग में उड़ा दे। क्या इसकी जरूरत है?
एक भ्रम दूर करने के लिए मैंने सोचा ये आर्टिक्ल तैयार करूँ। हमारी कंपनी नें एक सर्वे तैयार किया है। ये ऐसा सर्वे था जो ब्रांड हमसे प्रमोशन डिजिटल तरीके से भी करा रहे थे, और वे साथ ही साथ अपना परंपरागत तरीकों से भी विज्ञापन कर रहे थे। लागत के मुक़ाबले मुनाफा जिसको अंग्रेजी के शुद्ध शब्दों में ROI (Return of Investement) कहते वह परंपरागत की तुलना में डिजिटल 10 गुने भारी था।
कुछ भ्रम है आइये उन्हे समझते है।
भ्रम: वेबसाइट तो बड़े ब्रांड ही चलाते, मेरी दुकान छोटी है मैं क्यूँ वेबसाइट बनवाऊँ?
समाधान: आप ब्रांड नहीं है? शहर में भी तो ब्रांड होते? आपके पड़ोस वाले शर्माजी जिनकी इलायची के चाय की खुशबू आपको आपके घर से खींच लाती। वो भी एक दम सुबह सुबह। आपको क्या लगता है शर्माजी क्या है? क्या शर्मा जी ब्रांड नहीं? ब्रांड का मतलब ये थोड़े होता की बड़े बड़े महल हो हज़ारों की संख्या में कर्मचारी हों। ब्रांड मतलब होता है भरोसा। क्या आपके प्रॉडक्ट में है ऐसी बात की आप उसे ब्रांड की तरह परोस सकते। अगर इसका जवाब है हाँ तो आप हो गए ना ब्रांड फिर जन जन तक आपको ये तो बताना पड़ेगा ना की जैसे की शर्मा जी की मद्धिम आंच पर पकी चाय की खुशबू आप तक पहुँचती। फिर आपको प्रेरित करती आओ और जायका सही करो। आपके लिए आपकी वेबसाइट ये काम कर देगी।
भ्रम: मैं शुरू से ही प्रिटिंग विज्ञापन पर भरोसा किया हूँ और इतने बड़े डिजिटल मार्केट में मैं खो जाऊंगा ना?
समाधान: पहले भ्रम का समाधान है कि आपने प्रिटिंग विज्ञापन पर भरोसा किया है अब कीमतों पर आते हैं। 25 हज़ार पम्पलेट छपने में और बांटने में लगने वाले खर्च को अगर मोटे मोटे तौर पर निकाला जाए तो 10000 रुपया लगता है। जिसकी आयु अवधि कुछ मिनट से लगकर 1 दिन होती है। 25 हज़ार पम्पलेट एक शहर के किस कोने में खत्म होगा आपको पता भी नहीं चलेगा। शायद एक बड़ी कॉलोनी की ही क्षमता 25 हज़ार होती। हमने इसीलिए प्रिंट के सबसे छोटे इकाई से तुलना की। अब आपको हम वेबसाइट की ताकत समझाते जिससे आपके भ्रम के दूसरे पहलू का हल निकल के आएगा।
वेबसाइट मतलब आपका ऑनलाइन आवास जहां आप अपने अपने बारे में, ऑफर, नोटिफ़िकेशन, डिस्काउंट, सर्विस, प्रोडक्टस, कांटैक्ट, गूगल मैप, फोटो गैलरी, विडियो गैलरी। जब चाहें तब अपडेट कर सकते। शहर छोड़िए, प्रदेश छोड़िए, देश छोड़िए आप का दायरा पूरा ग्लोब होगा। कोई कहीं से भी चाहे तो आसानी से आपके बारें में जान सकता। आपके कस्टमर आपकी गतिविधियों पर लगाता निगाह रख सकते वो भी सिर्फ Rs 10000 में पूरे साल के लिए। इससे सस्ता प्रमोशन आज तक ईज़ाद ही नहीं हुआ। साथ ही लागत के मुक़ाबले मुनाफा जिसको अंग्रेजी के शुद्ध शब्दों में ROI (Return of Investement) कहते वो भी आपको शानदार मिलेगा।
भ्रम: मेरा ज्ञान इस मामले में बहुत अधिक नहीं है और मुझे कई बार ठग लिया गया मुझसे पैसे ज्यादा ले लिए गए और मेरी आजतक वेबसाइट नहीं बनाई गयी।
समाधान: देखिये अगर मार्केट में आम बिक रहा तो वो अच्छा भी है और घटिया भी। चुनाव आपका है आप कौन सा पसंद करते। आप शहर की नामी कंपनियों के संपर्क में जाइए। उनके क्लाईंट से उनके सर्विस के बारे में पूछिए।
- उनके परामर्श देने का तरीका क्या है?
- क्या आप उनके साथ सुरक्षित महसूस कर रहे?
- उनके पास ऑफिस है या नहीं?
- उनके पास टीम है या नहीं?
- उनके पास आपके बिज़नस के लिए कोई प्लान है या नहीं?
- क्या जो वायदे वो कर रहे वो आपको कैसा जान पड़ते है?
- आखिर और अंतिम बात केवल पैसे कम करके तो वो आपको वेबसाइट तो नहीं बेंच रहे?
क्यूंकी वेबसाइट सेवा है। वेबसाइट प्रॉडक्ट नहीं जो बेंची जाए। आप कंपनी का चुनाव सही करिए महज़ कुछ रुपयों को कम कराने के उद्देश्य से आप अपना और अपने कंपनी के बढ़त को ना रोकें।
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